...

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◆ मौन ◆
व्यतीत होते हर क्षण हर
घड़ी के साथ मेरी " आत्मा " का
एक हिस्सा या कहें कि
आत्मा का एक " अंग "
मर जाता है !
उस समय मेरी स्वयं की कुछ
" चिताएं "
जलती दिखाई देती हैं और ,,
बिल्कुल मेरी काया या कहूँ कि ,
स्वयं मेरे न जाने कितने
" शव "
ही सड़ते दिखायी देते हैं ,
मेरी विभिन्न जन्म की रूहों के
" प्रेत "
घूमते हैं मेरे चारो और जैसे
वो कर रहे हों मेरा
" परिहास " ..........फिर
वहीं घुप्प अंधेरे के अंदर थोड़ा सा
" चांदनी प्रकाश " पड़ने पर मेरे ही
" कंकाल "
मुझे दिखाई देते हैं ,,,,
कुछ भस्म उड़ती है ...
कुछ रुदन होता है ......
कुछ चीखें होती हैं .....
जिनकी " जुबान "
खींची जा चुकी है
वो बस अलाप रही हैं ,,,
और इन्ही सब के मध्य मैं मेरे
" जीवित मौन " को
हथेलियों से ढक कर
खड़ा रहता हूँ !!

© निग्रह अहम् (मुक्तक )
【 Ghost With A Pen 】