...

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सफर
काफिला चलता रहा, जाने कहाँ
मंजिले खोती रहीं, यहाँ वहाँ
दूर एक लौ सी ,जल ही रही थी
और उस लौ से, रोशन मेरा जहाँ.
हम थे यहां, तुम थे वहाँ
ऐसे लगे के, बिछड़े हैं सारा जहाँ.


अंधेरा घना सा ,छाने लगा है
हौसला, कदम ,डगमगाने लगा है
उम्मीद छूटी जा रही ,की कोई सगा है
जिंदगी लगने लगी ,अब एक सजा है

चाहते ,फरमाईशे ,अब धुंधली सी लगी है
राहते ,आजमाईशे ,अब खो सी गई है
जाने कहा गई वो हसरते
इल्म मेरा केह रहा तु करफतेह.
© Madhusudan