...

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अंधेरी रात में तू जुगनू सा भटकता क्यों है
अंधेरी रात में तू जुगनू सा भटकता क्यों है?
दिल चांद सा तेरी छत पर मटकता क्यों है?

उलझ जाए दिल कभी जो फरेब कांटों में
तू ख्वाब बन इन आंखों में चमकता क्यों है?

चिलमन में था तू, महफूज़ था ये दिल मेरा
बार बार ये आंचल कांधे से सरकता क्यों है?

कभी झील,कभी बादल,कभी खुली बारिश
बन फ़िक्र तू मेरे माथे से टपकता क्यों है?

मुफलिसी में जीना तो किस्मत थी अपनी
फिर चेहरा तेरा इन हाथों में चमकता क्यों है?
© manish (मंज़र)