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अंधेरी रात में तू जुगनू सा भटकता क्यों है
अंधेरी रात में तू जुगनू सा भटकता क्यों है?
दिल चांद सा तेरी छत पर मटकता क्यों है?

उलझ जाए दिल कभी जो फरेब कांटों में
तू ख्वाब बन इन आंखों में चमकता क्यों है?
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