***हिकारत***
वो नजर-ऐ- हिकारत से यूं देखते हैं,
गुनाहों का जैसे पुलिंदा हो कोई
जमाने से वेवस हुआ, कुछ तो समझो,
नही तेरा मुलजिम न गुस्ताख़ कोई।।
नहीं जानते हो , वफा-ऐ- मोहब्बत में कोई कैसे खुद को मिटाने लगेगा,
मिटाते मिटाते वो इतना मिटेगा,
कि बनने में उसको जमाना...
गुनाहों का जैसे पुलिंदा हो कोई
जमाने से वेवस हुआ, कुछ तो समझो,
नही तेरा मुलजिम न गुस्ताख़ कोई।।
नहीं जानते हो , वफा-ऐ- मोहब्बत में कोई कैसे खुद को मिटाने लगेगा,
मिटाते मिटाते वो इतना मिटेगा,
कि बनने में उसको जमाना...