10 views
***हिकारत***
वो नजर-ऐ- हिकारत से यूं देखते हैं,
गुनाहों का जैसे पुलिंदा हो कोई
जमाने से वेवस हुआ, कुछ तो समझो,
नही तेरा मुलजिम न गुस्ताख़ कोई।।
नहीं जानते हो , वफा-ऐ- मोहब्बत में कोई कैसे खुद को मिटाने लगेगा,
मिटाते मिटाते वो इतना मिटेगा,
कि बनने में उसको जमाना लगेगा।।
तेरी बन्दगी में, रिसेगा वो इतना
लगेगा खुदी को, वो तुझ सा बनाने
मगर उस से होगा, न ये सब मुकम्मल
शायद लगेंगे कई सौ जमाने।।
बनाते बनाते जो बिगड़ेगा खुद वो , कहाँ जायेगा और किसको बताने ,
जाए भी क्यों, होगा उस से भी क्या, लगेगा खुदी को ,वो खुद से सताने।।
मगर उसकी हालत पे हँसना कभी मत,
वो पहले भी रोया है सबको हँसाके
मुहब्बत जो की है, तो उसको जियेगा
चाहे हिकारत हो , दुनिया के आगे।।
© Rudravi
गुनाहों का जैसे पुलिंदा हो कोई
जमाने से वेवस हुआ, कुछ तो समझो,
नही तेरा मुलजिम न गुस्ताख़ कोई।।
नहीं जानते हो , वफा-ऐ- मोहब्बत में कोई कैसे खुद को मिटाने लगेगा,
मिटाते मिटाते वो इतना मिटेगा,
कि बनने में उसको जमाना लगेगा।।
तेरी बन्दगी में, रिसेगा वो इतना
लगेगा खुदी को, वो तुझ सा बनाने
मगर उस से होगा, न ये सब मुकम्मल
शायद लगेंगे कई सौ जमाने।।
बनाते बनाते जो बिगड़ेगा खुद वो , कहाँ जायेगा और किसको बताने ,
जाए भी क्यों, होगा उस से भी क्या, लगेगा खुदी को ,वो खुद से सताने।।
मगर उसकी हालत पे हँसना कभी मत,
वो पहले भी रोया है सबको हँसाके
मुहब्बत जो की है, तो उसको जियेगा
चाहे हिकारत हो , दुनिया के आगे।।
© Rudravi
Related Stories
36 Likes
10
Comments
36 Likes
10
Comments