...

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***हिकारत***
वो नजर-ऐ- हिकारत से यूं देखते हैं,
गुनाहों का जैसे पुलिंदा हो कोई

जमाने से वेवस हुआ, कुछ तो समझो,
नही तेरा मुलजिम न गुस्ताख़ कोई।।


नहीं जानते हो , वफा-ऐ- मोहब्बत में कोई कैसे खुद को मिटाने लगेगा,

मिटाते मिटाते वो इतना मिटेगा,
कि बनने में उसको जमाना...