राहत
प्रभूजी,
मैं माया के बंधनों से बचना चाहूँ,
पर आपकी तरह ही.. "माया- सखी" से मुक्ति न चाहूँ,
भला आपको रिझाने का..., आपको मनाने का..., माया से बेहतर विकल्प है, कोई?
कि समस्त चराचर जगत आप ही की माया है ना प्रभूजी...
मेरे करुणा-निधान के आगे दीन.. होकर भी, आत्मसम्मान का अमृत पाऊँ..
फ़िर मैं भृमित/निष्ठुर जग से आस क्यूँ लगाऊँ,
अब थम भी जाऊँ मैं,...
मैं माया के बंधनों से बचना चाहूँ,
पर आपकी तरह ही.. "माया- सखी" से मुक्ति न चाहूँ,
भला आपको रिझाने का..., आपको मनाने का..., माया से बेहतर विकल्प है, कोई?
कि समस्त चराचर जगत आप ही की माया है ना प्रभूजी...
मेरे करुणा-निधान के आगे दीन.. होकर भी, आत्मसम्मान का अमृत पाऊँ..
फ़िर मैं भृमित/निष्ठुर जग से आस क्यूँ लगाऊँ,
अब थम भी जाऊँ मैं,...