...

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राहत
प्रभूजी,
मैं माया के बंधनों से बचना चाहूँ,
पर आपकी तरह ही.. "माया- सखी" से मुक्ति न चाहूँ,
भला आपको रिझाने का..., आपको मनाने का..., माया से बेहतर विकल्प है, कोई?
कि समस्त चराचर जगत आप ही की माया है ना प्रभूजी...
मेरे करुणा-निधान के आगे दीन.. होकर भी, आत्मसम्मान का अमृत पाऊँ..
फ़िर मैं भृमित/निष्ठुर जग से आस क्यूँ लगाऊँ,
अब थम भी जाऊँ मैं, आपके श्रीचरणों में...
ओ मैया मेरी, लहराते तेरे आँचल में, बस चैन से सो जाऊँ...
हाँ...,है, ये ..भी सच,
कर्म क्षेत्र के मैदान में,मैं...नीरस ही रही ..अंहकारी, थी ना प्रभुजी,
जो आप ने सँवार लिया... प्रभुजी, अब मैं क्यों घबराऊँ...
सहज हो आऊँ..., सरल हो आऊँ...., आपके चरणों में स्थिर हो जाऊँ,
कि, ज़माने भर में भटक कर भी,मेरी अंतरआत्मा ने खुद को अकेला ही पाया.. एकमात्र आपके साथ में...,
मैंने खुद को क़दम क़दम पर निहाल पाया।
कोटि-कोटी प्रणाम प्रभूजी।🙏🇮🇳

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© nikita sain