ज़रा याद करो कुर्बानी
भयानक मंजरों के,दौर से,
गुजरा हुआ,अपना वतन,
जालिमों के जूल्म से,
लूटा हुआ है,ये चमन,
बस शिकस्तों पे,शिकस्तों,
का धरा पर,अवतरण,
कुछ शहीदों ने,न्यौछावर,
कर दी अपनी,जान तक।
एक लाठी से चली,
ऐसी हवा की आंधियां,
उड गयी,गोरों की सब,
उम्मीद रुपि अस्थियाँ,
जागरण का रण बजा,
जैसे बिगुल बजता समर में,
उड गये तृण भस्म बन,
नैया फंसी,उनकी भंवर में,
एक गांधी ने सबल हो,
स्वतंत्रता की अग्नि में,
अपनी स्वांस तक,
बलिदान कर दी।।
क्रांतियों की रस्म...