...

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बेज़ारी
#लालसा_की_प्रतिध्वनि
ऐसा भी क्या बैर है मुझसे, क्यों इतना बेज़ार हुए हो
सारी बातें मैं ही बोलूँ, तुम क्यों पुर असरार हुए हो
कितना मैं तुमसे करता था, बातें नयी पुरानी सब कुछ
तुम भी मुझसे कर लेते थे, गुस्सा और मनमानी सब कुछ
कभी बहस भी हो जाती थी, इक दूजे से चिढ़ जाते थे
थोड़ा थोड़ा रूठ मनाकर, फिर से आगे बढ़ जाते थे
कितने अच्छे दिन होते थे, और रातें भी प्यारी थीं
तेरा गुस्सा भी दिलकश था और बातें फुलवारी थीं
तेरी तबस्सुम तेरी बातें तेरा जलवा ला फ़ानी सा
जैसे कोई करता सरगम सा रे गा मा पा धा नी सा
कोई अहद ओ पैमाँ भी था अब हमको कुछ याद नहीं है
तेरे न होने से सब कुछ है पर दिल तो शाद नहीं है
आजाओ तुम इस सेहरा में अपनी बहारें फिर से लेकर
ये सेहरा अब वीराना है और कुछ भी आबाद नहीं है
एक ज़माना हो आया है एक अहद अब भी बाक़ी है
कोई तुझ से पहले न था , कोई तेरे बाद नहीं है
अब ऐसे हालात हैं कि बस अपनी दुनियादारी है
पूरा क़िस्सा ख़त्म हुआ पर फिर भी क़िस्सा जारी है।

शाबान नाज़िर -
© SN