कान्हा
भय से जिस के पापी कंस सोया नहीं कई रातों से
जन्म लिया उसने मध्यरात्रि कारागार में लौह सलाखों के पीछे
सात संतानों की मृत्यु से संतप्त बहन देवकी और बहनोई वासुदेव की व्यथा की चीखें ना कंस के कान पड़ी
कारागार से पहुंचकर ब्रज नंद और यशोदा के आंगन में पल बढ़कर अंत में मथुरा मृत्यु कंस के समक्ष आन खड़ी
कमलनयन चंचल चितवन से सुशोभित कान्हा के रूप ने सबके मनों को लुभाया
नटखट गोपाल ने मटकियां फोड़ गोपियों की माखन चुरा चुराकर खाया
गोपी ग्वाल गौऔ तथा समस्त बृजवासियों के तन मन पर प्रेम गोविंद का ही छाया
रासलीला करे माधव गोपियों संग बिन रास गोपियों को एक क्षण भी रास ना आया
रूकवाकर प्रथा इंद्र पूजन की गोवर्धन को पूजकर किया इंद्र का मान भंग
मुरलीधर ने ऊंगली पर गोवर्धन को उठाकर किया...