...

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मैं तुझमें ❤ही हूँ..!
मेरे मकान का पता है सबके पास
पर मैं तो तुझमे ही बसती हूँ.....
यूँ तो कुछ भी नहीं है मेरे पास
बस एक दिल तेरे नाम का रखती हूँ... !

तेरा अक्स रहता है अक्सर मेरे साथ
मैं उसमें , तुझे ही महसूस करती हूँ....
हँसती हूँ, रोती हूँ, जीती हूँ मैं तेरे साथ
मैं तुझसे ही मोहब्बत करती हूँ....!

जुड़ी हूँ तुझ संग ऐसे मैं, जैसे हर लम्हा मैं तुझ संग गुज़ारती हूँ...
माना की होती है तड़प मिलने की, पर मैं तुझसे अलग कहाँ जीती हूँ...!

बिन लफ्ज़ की हर बात कहती हूँ मैं तुझसे, खामोश रह कर भी बातें करती हूँ..
होती है बातें दो दिलों के दरमियाँ, मैं तो हर ज़ज़्बातों को महसूस करती हूँ..!

हाल ए दिल मेरा पता है तुम्हें भी , और मैं भी तेरे दिल का हाल जानती हूँ...
है एक बोझ इन लबों पर कबसे, बस आज इन्हें उतार देती हूँ....!

लिख कर कलम से कोरे पन्ने पर,सोचा बोझ थोड़ा कम कर लेती हूँ...
ना लब से उतरे ये लफ़्ज़ मेरे दिल के,
ना कुछ अब लिख पाती हूँ....!

पर मैं तो तुझमे ही बसती हूँ.....
यूँ तो कुछ भी नहीं है मेरे पास
बस एक दिल तेरे नाम का रखती हूँ...

जयश्री ✍🏻