...

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देखा हमनें !
इंसानियत में ना मज़हब देखा हमनें
उस फरिश्ते को जब देखा हमनें

उसमें कुछ तो खास बात रही होगी
जो उस अदा को गौरतलब देखा हमनें

गुलाब में काँटे होना लाज़मी है फिर क्यों
सौ अच्छाई में इक खामी को बेमतलब देखा हमनें

देखते तो हर दम उसे अदब से हैं पर
कभी कभी खुदमें इक बेअदब देखा हमनें

पत्थर में खुदा दिखना आम बात है
इक अजनबी में रब देखा हमनें

इंसानियत में ना मज़हब देखा हमनें
उस फरिश्ते को जब देखा हमने

© Ruby
(Old)

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