झील के किनारे
झील के किनारे बैठी,
सपनों के नाव में,
मैं बनाती रही
कई ख्यालों के कारवें
सूर्य की रश्मियां हो या
हो चंद्र की कलाएं
हो सर्द हवा या कि
फिर लू के बहते थपेड़े
...
सपनों के नाव में,
मैं बनाती रही
कई ख्यालों के कारवें
सूर्य की रश्मियां हो या
हो चंद्र की कलाएं
हो सर्द हवा या कि
फिर लू के बहते थपेड़े
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