...

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तिरे लबों का ज़हर …याद आया
दिल दहल सा गया
जब सरे शाम
वो मंजर याद आया

जब तिरे हाथों के गुलदस्तों में
छुपा हुआ
ख़ंजर याद आया

तिरे लबों को
चूम लेने की
हसरतें तो बहुत थीं लेकिन

तिरे लबों की चाशनी में
छुपा हुआ
ज़हर याद आया

यूँ भी
भर लेना चाहता था मैं
बोसा तिरे गालों का ऐ हरजाई

फिर ना जाने क्यूँ
तिरा होना ना होना
सब याद आया

तिरे हिज्र में कटी रातों को
भुला देने की
कुव्वतें तो बहुत की लेकिन

तेरी यादों में हर रात का खोना
उस रात भी बहुत याद आया

मेरा कहानी में
तेरा
होना ना होना बहुत आया….

#हसरतों_के_दाग
© theglassmates_quote