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सफर
कैसा ये सफर है,
नयी नयी सी डगर है ,
चारो ओर छाए है उदासी के बादल,
फैला दिया है अंधकार ने अपना आँचल.,
मन मे पड़ा है कपट का खंजर,
सच्चाई के खेत पड़ गए है बंजर.,
नहीं बो सकते भरोसे की बीज,
क्योंकि तोड़ देगी उसे फरेब की खीज.,
मत बनाना किसी को तुम्हारा सहारा,
नहीं तो उड़ जायेगा तुम्हारे आत्मसम्मान का गुब्बारा.
नयी नयी सी डगर है ,
चारो ओर छाए है उदासी के बादल,
फैला दिया है अंधकार ने अपना आँचल.,
मन मे पड़ा है कपट का खंजर,
सच्चाई के खेत पड़ गए है बंजर.,
नहीं बो सकते भरोसे की बीज,
क्योंकि तोड़ देगी उसे फरेब की खीज.,
मत बनाना किसी को तुम्हारा सहारा,
नहीं तो उड़ जायेगा तुम्हारे आत्मसम्मान का गुब्बारा.
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