वस्ल की चाह
हां,,मै भी इक रोज खुद को बेहद सजाऊँगी,,,
फलक के अंजुम,,अपनी ओढनी मे लगाऊंगी,,
माहताब से उधार लेकर,,उसकी सफाक रौशनी,,
उसके नूर से,,,मासुम चेहरा अपना चमकाऊँगी,,
सुरमई...
फलक के अंजुम,,अपनी ओढनी मे लगाऊंगी,,
माहताब से उधार लेकर,,उसकी सफाक रौशनी,,
उसके नूर से,,,मासुम चेहरा अपना चमकाऊँगी,,
सुरमई...