...

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चेतना..
मुझे कहीं ढूँढ़ने का प्रयत्न ना करो....
मैं तुम्हारे अन्दर हूँ तुम्हारी आत्मा
मेरा ही अंश है...
प्रतिक्षण तुम्हारे ही पास हूँ....
तुम्हारे ही साथ हूँ...

जब कोई तुम्हें सद्मार्ग बताये
वो मैं हूँ..

तुम पर कोई करुणा दिखाये
वो मैं ही हूँ..

जहाँ सत्य है, करुणा है, विनम्रता है
वहाँ मेरा वास है..

तुम ही मुझे संसार में खोजते फिरते हो
और मैं तुम्हारे अन्तर में बैठा
तुम्हारी इस व्याकुलता पर
मुस्कुराता रहता हूँ..

अपने अंतर में देखो तो सही..
क्या सत्य है.. क्या असत्य
सबका उत्तर तुम्हें मिल जायेगा..

पर तुम अपने चंचल मन की सुनते हो
और अपने ही पतन के द्वार खोलते हो..

सद्मार्ग बताता हूँ पर चलते नहीं हो..?

दिशाविहीन होकर यहाँ वहाँ भटकते रहते हो..फिर भयभीत होकर
मुझे पुकारते हो..

तब अपनी समस्याओं के लिये उत्तरदायी कौन है..?

परमात्मा या मनुष्य...

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