...

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एक नादान सी औरत
एक नादान सी औरत,,,
दिमाग से पूरी तरह खाली पर दिल की बड़ी अमीर थी वो,
खुद हंसती औरों को भी हंसाती थी वो

जिन लोगों को अपना समझती थी, उन पर खूब प्यार लूटाती थी वो
मूर्खतापूर्ण और मासूम सी बातों से खुशियों की फुहार बिखराती थी वो

खुद में मस्त और अपनों पर जां लुटाती थी वो
कभी उसने मांगा नहीं किसी से थोड़ा सा भी स्नेह, अपनों में स्नेह बांटकर बड़ी आनंदित होती थी वो

समय और परिस्थिति से, न जाने कब कमजोर हुई वो
स्नेह की जरूरत पड़ गयी, स्नेह बांटने वाली को
थी एक नादान सी औरत,,,

जिससे ज्यादा लगाव था उसको, उसी से उम्मीदें करने लगी वो
पर न समझा किसी ने उसको
हर रिश्तेदार और सब मित्रों से, सबसे दूरियां पाई वो

अंत में अपनों के खातिर ही, फिर अपनों से दूरियां बनाई वो
अपनों से दूरियां बनाई वो,,,
अंतर्द्वंद्व से जूझ रही बड़ी मुश्किल घड़ी थी वो
जब अपनों के बीच खुद को अकेली पायी वो
एक नादान सी औरत,,,

© 💥B@v@₹¡💥