...

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बचपन
हर शैतानी का
तब एक नया बहाना था
हर छोटी बात बात पर
बस थोड़ा मुस्कुराना था
किसी भी बात की तब फिक्र न थी
अपनी हरकतों से
बस सबको हंसाना था ।
हर पल मिट्टी में खेलना था
और दोस्तों के साथ खोए रहना था,
तब थोड़ा सा भी रूठने पर
मनाने वालो की भीड़ थी,
और फिर भी न मनाने पर
मां की हल्की-प्यारी सी डांट थी
ये सब तो,बस बचपन की ही बात थी ।
आज याद करने पर
उन दिनों को,
होता है एक प्यारा सा एहसास
बचपन में फिर से लौटने मन करता है
और फिर से उन शैतानियों को
दुहराने की,मन में होती है एक आस,
पर फिर जब हम
हकीकत से रूबरू होते हैं
तो बस उन लम्हों को याद करके हीं
खुद ही खुश होते हैं,
सोचते हैं आज के बारे में
और फिर हमारे सामने
न जाने कई सवाल होते हैं ।
तनाव भरी इस जिंदगी में
एक बेचैनी भरी रात भी है,
बचपन की उन रातों से बिल्कुल अलग
जो शीतल और शांत सी थीं,
तब यारों का एक झुंड था
और मां की प्यारी सी डांट थी,
ये सब तो,बस बचपन की ही बात थी ।।