...

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अनजान लोगों का अपनापन
तुम मेरे ख्वाबों की वोह सपना हो हकीकत में कभी नहीं पूरा हो सकते हो;
इसलिए डरती हूँ की आंक खोलने से अगर में आंख खोले थो ये सपना टूट जाएगा
और हकीकत मुश्किल हो जायेगा;
किसने सोचा था ये अनजान से इतना अपनापन मिलेगा की खुद की अपनों को भूल जायेंगे;
इस अनजान की दुनिया में इतना खो जाउंगी की खुद की दुनिया भूल जाएंगे;
जानती हूँ यह ये सब कुछ हमेशा के लिए नहीं है सब कुछ चेलजाएगा ये वक़्त, ये जगह, ये इंसान भी पर सिर्फ रहा जाएंगे थो यादेनोकी;
हकीकत में मिलेंगे या नही ये थो नहीं पता पर यादों में ज़रूर मिलेंगे यार



© Manasa