...

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झूठ का मंच

यह दुनिया भी क्या गजब पहेली है,
हर कोई अपना ही मतलब चाहता है,
खुशियों की बातें करते सब हैं,
लेकिन दूसरों का दर्द कौन समझता है?

इंसानियत अब एक किताब का हिस्सा है,
जिसे हम सिर्फ पढ़ते हैं, जीते नहीं।
यहां तो बस वो सफल है,
जो दूसरों के सपनों पर पांव रखता है।

यहां हर चेहरा एक मुखौटा पहनता है,
सच का नाम लेना जैसे गुनाह है।
धोखा, झूठ और दिखावे की ये दुनिया,
जहां ईमानदारी का कोई मोल नहीं रहता है।

यहां रिश्ते भी सौदेबाजी से बनते हैं,
हर जुबां पर...