इकतरफ़ा इश्क़ का शहर-002
आज इस शहर से उस शहर गया था
सच बताऊँ तो बड़ा मज़ा आया।
फिर से हम दोनों अज़नबी लग रहे थे,
फिर इब्तिदा-ए-इश्क़ जैसा लगने लगा,
फिर हवाओं ने अपनी मंज़ूरी दी,
फिर बादलों ने ख़ूब शोर बरपाया।
शायद वो चाहता था
की मैं तुम्हें जी भर के देख लूँ।
शायद वो चाहता था
की मैं तुम्हें आँखों की गहराइयों में बसा लूँ।
शायद वो चाहता था
की मैं तुम्हें ता-उम्र अपनी पलकों पे सजा...
सच बताऊँ तो बड़ा मज़ा आया।
फिर से हम दोनों अज़नबी लग रहे थे,
फिर इब्तिदा-ए-इश्क़ जैसा लगने लगा,
फिर हवाओं ने अपनी मंज़ूरी दी,
फिर बादलों ने ख़ूब शोर बरपाया।
शायद वो चाहता था
की मैं तुम्हें जी भर के देख लूँ।
शायद वो चाहता था
की मैं तुम्हें आँखों की गहराइयों में बसा लूँ।
शायद वो चाहता था
की मैं तुम्हें ता-उम्र अपनी पलकों पे सजा...