...

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सुशांत सिंह राजपूत
खो गया तू इस क़दर इस जहां में
की तुझे ढूंढ पाना अब मुमकिन नहीं है,
खो दिया हमने एक और सितारा
और अब उसकी जगह कुछ भी नहीं है ।
अभी इस सितारे को और चमकना था
आसमां की हर उचाई को उसे नापना था,
पर वो जो इतनी दूर चला गया हमसे
क्या उसे नहीं लगा कि उसे कुछ देर और रुकना था ?
दर्द तो सारे छुपा लिए तूने अपने
एक प्यारी सी मुस्कान अपनी दिखाकर,
क्यूं छोड़ गया खुद इस जग को
हमें इसमें रहने की हिम्मत दिलाकर ?
गलती नहीं थी तेरी वो की
किसी ने समझा नहीं दर्द जो था तेरा,
पर क्यूं इतना रूठ गया तू हम सबसे
की बदल लिया तूने खुद अपना ही बसेरा ??