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आंखो की जुबानी# dedicated to all 80 + dadi and nani ma# who capture many told and untold stories in their eyes#
आंखो की जुबानी
- आस्था
कभी मायके मे बीते पलो को
कभी ससुराल मे आने वाले कल को
इन आंखो न बहुत कुछ देखा हैै।।
कभी धुप मे मसालो को सुखते
कभी उन मसालो का चटकारे लेते
इन आंखो न बहुत कुछ देखा हैै।।
कभी बहु को गृह प्रवेश करते
कभी सास को दादी बनते
इन आंखो न बहुत कुछ देखा है।।
कभी बचपन की ज़िद को
कभी जवानी की बगावत को
इन आंखो न बहुत कुछ देखा है।।
कभी जिदंगी को जाते
कभी नई किलकारी को जन्म लेते
इन आंखो न बहुत कुछ देखा है।।
कभी त्यैहारो मे खुशियों को बिखरते
कभी दुख मे खामोशी से रोते
इन आंखो न बहुत कुछ देखा है।।
कभी रिश्तों को गुस्सा से संभलते
कभी रिश्तों मे प्यार को लूटाते
इन आंखो न बहुत कुछ देखा है।।
पल- पल इस घांरोदे को सजते-संवरते- संभलते
इन आंखो न बहुत कुछ देखा है।।
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