...

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सताने लगे है
आजकल वो हमें कम बुलाने लगे है
शायद हमारी जिंदगी से जाने लगे है।

करते थे इश्क़ जो खुलेआम हमें
आज वो चेहरा घूंघट में छुपाने लगे है।

नहीं कोई उम्मीद उनके लौट आने की,
जो हमेशा के लिए हाथ छुड़ाने लगे है।

इस बात से तसल्ली होती है आशिक़ को
हमारा नाम रकीबों में वो समाने लगे है।

निकलता है धुआँ अब हमारी रगों से,
खून से लिखे हमारे खत वो जलाने लगे है।

आ जाते थे सब छोड़कर एक आवाज़ से,
ना आने के खूबसूरत बहाने दिखाने लगे है।

मत पूछ हाल-ए-दिल मुहब्बत में 'चाँद'
उनके हर लफ्ज अब हमें सताने लगे है।
Ritesh Christian
-चाँद