...

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छाया मत छूना
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में है सुरंग सुधिया सुहावनी
छवियों की चित्र गंध फैली मनभावनी
तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी
कुंतल के फूलों की याद बनी चांदनी
भोली सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन होगा दुख दूना
यश हैं या वैभव है मान है न सरमाया
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया
प्रभुता की शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन होगा दुख दूना
दुविधा हत साहस है दिखता है पथ नहीं
देह सुखी हो पर मन में दुख का अंत नहीं
क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर
जो ना मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरर्ण
छाया मत छूना
मन होगा दुख दूना