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फुहार
झिमिर-झिमिर पड़े रेशमी फुहार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
दुअरा पर गमके बेला, कचनार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
सुनु ए सखी सब परसो के बतिया,
राधा रानी के अइले संहतिया।
वगिया मे झूला पड़े कदम के दारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
धरती के चुनर भईल बा धानी,
उमड़-उमड़ बहे सरयू के पानी।
वंशी के धुन डोले गोकुल के नारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
रुनझुन-रुनझुन नाचेले गइया,
चीं-चीं-चीं-चीं चहके वन के चिरइया।
गोपियन सजी सब सोलहो श्रृंगार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।
© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey
सखि सब चलु मल्हार गावे।
दुअरा पर गमके बेला, कचनार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
सुनु ए सखी सब परसो के बतिया,
राधा रानी के अइले संहतिया।
वगिया मे झूला पड़े कदम के दारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
धरती के चुनर भईल बा धानी,
उमड़-उमड़ बहे सरयू के पानी।
वंशी के धुन डोले गोकुल के नारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
रुनझुन-रुनझुन नाचेले गइया,
चीं-चीं-चीं-चीं चहके वन के चिरइया।
गोपियन सजी सब सोलहो श्रृंगार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।
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