...

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एक प्रेमिका अपने प्रेमी से और क्या चाहती है?
मैं उसके प्रेम में हूँ उसके सुख दुख में हूँ
उसके ख़यालों को हक़ीक़त बनाने में हूँ
उसकी ख़ुशी के लिए दिन रात प्रयत्नशील हूँ
. प्रेम को परिभाषित करने के लिए
कुछ कहता नहीं कुछ लिखता नहीं
उसे शब्दों में बयां करना भी चाहूं तो
उसका नाम लिखकर आगे बढ़ता नहीं
मुझे उसका पास रहना अति प्रिय है
दूर रहकर उसकी वाणी से उसे एहसास करना अति प्रिय है
मुझे उसका सजना संवरना पसंद है
वो बन बनकी लिबास ओढ़े चाहे
पर पर..उसकी हृदय की शालीनता सबसे प्रिय
मुझे भूख भी कैसे लगें जब उसके हाथ से
दिया निवाला करता हो मन संतुष्ट
बेशक़ उसका स्पर्श मोहित करता हो
पर उसका मेरी रूह में समाहित होना मोक्ष है
मैं उसके अंग का ऐसा हिस्सा बनूँ
जो करें सफल उसकी ख़्वाहिशों का हर मुकाम
वो उन्मुक्त उड़ान भरे और मैं उसका पंख बनूँ
मुमकिन है सबकुछ मेरे बस में नहीं
पर वो यह तो बताये
..एक प्रेमिका अपने प्रेमी से और क्या चाहती है?


© दीपक चन्द्र