...

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किसान
गरीबी की चादर कितनी मोटी है
फिर भी ठंड इनको ही क्यों लगती है
गर्मी मै तोह बदन लाल है
पर किसको किसकी परवाह है।

रोज मरते है खाने को
पर खुदारी अभी बाकी है ।
भले दो वक़्त का ना मिले भोजन
पर खेत मै जाना राजी है

खुद को आग मै झोक के
कोयला से खरोच के
तपती धूप को बसेरा बनाया है
हम फिर कहते है ये गावर कहा से आया है

दो वक़्त को आनज मुसासिर नहीं
जिस्म की परछाईं भी नहीं
हालत है अब बेहाल
फिर हर खेत खलिहान मै है वीर किसान


© rsoy
#farmers