...

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क्यों ना फिर से अजनबी बन जाए
क्यों ना फिर से अजनबी बन जाए,
जो पिछली बार की गलतीया ,
इस बार ना दोहरा पाए,

एक दुजे की कमी ना देखी,
पता नहीं थी,खूबियां भी
ना एक दुजे की पसंद,ना पसंद भी
फिर भी एक दुजे को एक दूसरे से बेइंतहा प्यार हुआ,
फिर से खुद की ऐसी क्यों ना नजर बनाए,

जीते थे तब भी खुद की जिंदगी,
जो मिलते थे, पल वो हमेशा तब भी एक दुजे के लिए ही थे नजर आए,

क्यों ना हम फिर से अजनबी बन जाए,
और फिर से कोई गिला शिकवा किए बैगर
वहीं भरोसा फिर से करते जाए,
नई रिश्ते की शुरुआत के बजाय,
फिर से इसे ही फिर से पहला रिश्ता बनाए।
© चांद