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ज़िक़्र ए ज़िंदगी.....💯
मेरी ज़िंदगी का है अजीब मसला
सब मिला कुछ मिलकर रह गया
हर जगह जिस सांचे में ढली
कमाल तो तब हुआ
कि साथ तब भी न चल सकी
कभी बनी सहर कहीं
कहीं किसी की बन शाम ढली
कभी धोके को भी शिद्दत से निभा चली
कभी अंधेरे में भी रोशनी बनी
पर फिर भी न किसी का साथ मिला
न मैं किसी की कुछ बनी
सब जानते थे दर्द मेरा
कुछ पल संभाल लिया मुझे
पर साथ वाले ने सिखाया
के कोई नहीं है साथ मेरे
मोहब्बत की शिद्दत तक निभानी चाही चाहत मैंने
पर मेरी तरह मुझे कोई मिला नहीं
कुछ पल मेरी तरह वो बन भी गया
जो आज बदला बदला सा है कभी
अजनबी से जान तक
इज़्ज़त से लेके मां तक
घर से लेकर दुकान तक
ज़िंदगी की हर एक ज़रूरत हर इक बात तक
पहले तो सब साथ निभाते हैं
पर कुछ वक्त बहुत कुछ सिखाकर
वो सिखाने वाले सबसे पहले बदल जाते हैं
शुरू में कहते थे कोई शिकायत हो तो ज़िक़्र करना
अब है भी गर तो छोड़ो क्या फ़िक्र करना
अब उम्र के इस पड़ाव में
सब देखा परखा है दिल ने
अब दिल शिकायतों पर भरोसा नहीं करता
अब जाना है सब्र,वक़्त और नज़रिये का फ़लसफ़ा
अब दिल किसी से कोई शिकायत नहीं करता
अब समझ गए हैं मेरे जज़बात भी
की बयां कर के भी कोई हौसला कोई इलाज नहीं मिलता
बेहतर है खमोशी से ज़िंदगी के अनुभव को जिया जाए
जो ज़िंदगी में रुके तो ठीक वरना जो जाना चाहे तो उसे भी जाने दिया जाए
कुछ अनुभव हैं मेरे ज़िंदगी के
सोचती हूँ साझा कर लिया जाए
शायद तुमसे अलग हो दर्द मेरा
पर हो सकता है मेरे दर्द से तुम्हें कोई रास्ता मिल जाये.......


© quotes_by_shiddat@insta