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बाबाओं की वास्तविकता
(निलोत्पल मृणाल जी कहते है ।
"ए कवि कविता नही ,अपने समय की चिंता लिखो" )

मित्रो काल्पनिकता लिखने से लाख गुना अच्छा वर्तमान की स्थिती लिखी जाए ।
आजकल ढोंगी बाबा लोगो को बहुत लूटते है इसी पर कुछ लिखा है ।
ताकि ये ढोंग लोगो तक पहुंच सके इस माध्यम से कुछ ही पर लोगो मे जागरूकता आए।


"मै भगवान के घर से आया
और दूत हूं उनका प्यारा ।

दुनिया मेरे कहे पे चलती।
बना हूं बाबा निराला ।

मस्तक पर है तिलक सुशोभित
तन केसरिया, भगवा डाला ।

हाथो मे है डमरू , डम डम
गले में तुलसी की माला ।

निर्देशित करता हूं सबको
ज्ञान दिया हूं मतवाला।

नोटो की बरसा नित होती
और नित नव भोजन पाता।

सबको लगता मैं झुग्गी
पर मैं महलों के सुख पाता।

नही है मेरी समय सारणी ,नहीं कोई नियम मेरा
नित्यकर्म के नाम पे दिन, मैं कुछ माला बस जप लेता।


(बाबाओं पर व्यंगातमक भजन)

बाबा की निकली सवारी ,देखो महिमा है न्यारी।
बाबा के सर पर जटाऐ बहुत है ।
बन गए है ब्रह्मचारी , देखो महिमा है न्यारी।

मैं हूं कर्ता , मैं हूं धरता ।
श्रष्टि भी मैंने रचाई, देखो महिमा है न्यारी।

बाबा निकली,,,,,,
सबके सामने है एक झोंपड़ी में , एक झोंपड़ी या एक डेरे में।
डेरे के अंदर है दुनिया बसाई , देखो महिमा है न्यारी।

आगे पीछे है लड़कियों की पंक्ति ।
एक ओर रंभा , दूजी ओर मेनिका।
हनिप्रीत जैसी है इनकी लुगाई ,देखो महिमा है न्यारी ।
ढोंगी है बाबा न झांसे में आना ।
करनी है पूजा , ईस्ट घर में मनाना।
छोड़ो ये बेफिजूल की सेवकाई,देखो महिमा है न्यारी ।।












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