ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।Gazal-e-Sagar
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
मेरे शरीर में मेरा दिल अभी भी कम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।
कैसे बताऊँ हाल-ए-दिल-दिल उस बेवफ़ा को मै,
अपने आंसूओ के सागर ख़ुद में हम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।
तेरी यादों को कैसे मै ख़ुद से रुसवा करूँ,
मेरी यादों की...
मेरे शरीर में मेरा दिल अभी भी कम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।
कैसे बताऊँ हाल-ए-दिल-दिल उस बेवफ़ा को मै,
अपने आंसूओ के सागर ख़ुद में हम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।
तेरी यादों को कैसे मै ख़ुद से रुसवा करूँ,
मेरी यादों की...