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ढह गया,,,
एक घर था मेरे सपनो में
अब सपनो में ही रह गया
एक मोड़ ऐसा आया जीवन में
मेरे मुड़ते ही सब ढह गया
वो नीम की ठंडी छाव,
वो जामुन की झुकी टहनियां
एक एक कर सब खो गई
फिर मेरा आंगन भी कही खो गया
मिल कर सजाया था
जिस घर को हम दोनो ने
वो अब सिर्फ मेरा क्यों रह गया
मेरे नाम वाली दीवारे खड़ी रही
क्यों तेरे नाम वाला छज्जा ढह गया
एक घर था मेरे सपनो में
अब सपनों में ही रह गया
© char0302
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