...

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एक मोहब्ब्त ऐसी भी
हां..ये सच हैं की तु मेरी मोहब्ब्त हैं...
पर इस जहां में तेरे सिवा मां-पापा भी तो हैं.....
जिन से सीखा ही हैं मोहब्ब्त करना.....
हां..ये भी सच हैं की चाहत हूं मैं तुम्हारी...
पर तुझसे ज्यादा भी तो किसी औरों की चाहत हूं...
हां..ये सच हैं की तुझसा कोई रिश्ता नहीं ...
पर रिश्ते और भी तो हैं जिन्दगी में मेरे...
चलो आज मिलाते हैं तुझसे ज्यादा इन अपनों से...
जान हूं अपनी मां का..., मान-सम्मान हूं अपनी पापा का....
तबियत हूं अपनी दादी का ..और
हर मुश्किल से मुश्किल सवालों का..
हल हूं अपने भाई-बहनों का...
और सबसे बड़ी बात स्वाभिमान हूं खुद का...
निशानी हूं पटेल खानदान का तो....
मुमकिन ही नहीं की बहक जाउँ मैं कभी...
दिल और बात तो ये सब भी रखते हैं ..
इक सिर्फ तुम ही तो नहीं..या फिर तुझसे पहले अकेली तो नहीं...
तो भी ये सच हैं की मोहब्ब्त आज भी तुझसे हैं ..
पर जिन्दगी में स्वाभिमान से बढ़कर मोहब्ब्त तो नहीं ...
मिलेंगे कभी किसी जन्मों में इस intercast के बिना....
हर किसी मोहब्ब्त को नाम मिले ये जरूरी तो नहीं...