खत और तुम
गिरह खोल दी है एहसासों की
ताकि स्याही अपना रास्ता चुने
बेसुध से पड़े अरमाँ जो है
अब पंख मिले...
ताकि स्याही अपना रास्ता चुने
बेसुध से पड़े अरमाँ जो है
अब पंख मिले...