...

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गीत हमारे हस गुल्ले के गाल नहीं
हमारे गीत ..

गीत हमारे हसगुल्ले के गाल नहीं ।
सड़क छाप आवारों के ससुराल नहीं ।
ये बंदीजन के विरदावलि नृत्य नहीं ।
ये विशेष अनुकंपाओं के कृत्य नहीं ।।

जिस विचार के ग्राहक हों वह तर्ज नहीं ।
पर विवेक आधारित इसमें मर्ज नहीं ।
गीत हमारे स्वर हैं मूक दशाओं के ।
उपालंभ ये पीड़ाओं के घाओं के ।।

शब्द नहीं जनरंजन के डाले हमने ।
अर्थ नहीं परवसता के पाले हमने ।
गीत काव्य के विविध बोध का व्यंजन है।
वर्ण वर्ण इसमें साहित्य प्रसिंचन है।।

गीत हमारे क्लिष्ट किंतु मर्यादित हैं ।
जीवन दर्शन के स्वरूप आच्छादित हैं ।
ये उत्श्रृंख...