...

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ए ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी तू ही बता तुझे कैसे चाहूं,
तेरे नख़रे मुझसे अब झेले नहीं जाते।

ये बांकपन ,ये अदा , ये मस्तियां , ये शोख़ियां ,
मरहले और भी हैं , तेरे नाज़ अब ठेले नहीं जाते।

बा अदब आ ,जो कभी मेरी आग़ोश में आ ,
वर्ना जा, बे अदब और मुझसे अब झेले नहीं जाते।

थक गए हैं ,एहसान चुकाते- चुकाते ,
अब जाना ब्याज भी साथ में आतें हैं मूल अकेले नहीं आते।

ये मजबूरी है मेरी , जो मैं जिंदा हूं ,
क्या करूं? मौत के कारिंदे उठा ले नहीं जाते।

'ए खुदा' मौत दे या पत्थर कर दे,
'ख़ाक' से अब ये झमेले झेले नहीं जाते।।


© khak_@mbalvi