...

5 views

हवा
ए बेपरवाह हवा
तू इतनी चंचल क्यों ?
तू छूती भी शोर से
और तुझमें ही इतना सुकून क्यों ?
लड़ती है तू बादलों से
और तेरी राहें तेज़ क्यों ?
तू महसूस होती है
तू राहत भी बनती है।
पर जब तू तूफ़ान बन
सबसे लड़ती है,
तब तुझमें इतना गुरूर क्यों ?
फिर तेरे ही गुस्से को शांत करने,
बारिश भी बरसती है।
फ़िर बादल को हराने
तेरी रफ़्तार बेपरवाह क्यों ?
तू इश्क़ न होकर भी
दीवानगी सी बंठन कर
मौसम के साए में घुलती क्यों?
ए बेपरवाह हवा
तू इतनी चंचल क्यों ?

© KALAMKIDIWANI