...

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खालीपन
बचपन ही अच्छा था ये दिखावटी दुनिया में जीने से,
एक सुकून था चाहे अच्छे दिन थे चाहे बुरे,
अब कुछ अच्छा भी है तोह भी अच्छा नहीं,
जैसे कुछ मर गया है भीतर,
एक खलीपान सा बाकी है,
जो कभी भरता ही नहीं,
चाहे कुछ कर लो,
कभी ना कभी वापिस लौट कर आ ही जाता है,
जब असल में अपनी फालतू बातें किसी को कहनी हो तभी कोई नहीं होता,
शायद ये ज़रूरी भी नहीं की हर कोई हमेशा रहे ,
पर ये अजीब सी कशमाश का निवारण क्या है,
इस खालीपन की वजह क्या है?
© vyanjana