दुनिया
क्या दुनिया में हर वक्त ही आशुफ़्तगी का दौर था,
बचपन मेरा था आगही या आलम ये कुछ और था.
हर शय की इज़्ज़त थी वहां हर शख़्स की निगाह में,
और सबकी हरकत पे ज़माना ये निगाह-ए-ग़ौर था.
हम क्या पहनते, कहां जाते, प्यार किससे कर रहे,
शायद समझने...
बचपन मेरा था आगही या आलम ये कुछ और था.
हर शय की इज़्ज़त थी वहां हर शख़्स की निगाह में,
और सबकी हरकत पे ज़माना ये निगाह-ए-ग़ौर था.
हम क्या पहनते, कहां जाते, प्यार किससे कर रहे,
शायद समझने...