दुनिया
क्या दुनिया में हर वक्त ही आशुफ़्तगी का दौर था,
बचपन मेरा था आगही या आलम ये कुछ और था.
हर शय की इज़्ज़त थी वहां हर शख़्स की निगाह में,
और सबकी हरकत पे ज़माना ये निगाह-ए-ग़ौर था.
हम क्या पहनते, कहां जाते, प्यार किससे कर रहे,
शायद समझने का ये बातें वक़्त ही कोई और था.
झुकता था हर सर ख़ुदा के हर घर के रू-ब-रू,
सलीके ऐसे थे उन दिनों या वो वक्त भी बे-तौर था
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'
आशुफ्तगी - उथल पुथल, परेशानी, अस्त व्यस्त (tumultous, troubled)
आगही - चेतना, जागरूक (aware, conscious)
शय - चीज़ (thing)
निगाह ए गौर - ध्यान से देखना (to observe with care)
सलीके - तमीज़, अदब (ettiquettes)
अर्ज़ किया है.....
#Shayari #motivational #thoughts #Hindi #urdupoetry #live #lifestyle #Love&love #evening
बचपन मेरा था आगही या आलम ये कुछ और था.
हर शय की इज़्ज़त थी वहां हर शख़्स की निगाह में,
और सबकी हरकत पे ज़माना ये निगाह-ए-ग़ौर था.
हम क्या पहनते, कहां जाते, प्यार किससे कर रहे,
शायद समझने का ये बातें वक़्त ही कोई और था.
झुकता था हर सर ख़ुदा के हर घर के रू-ब-रू,
सलीके ऐसे थे उन दिनों या वो वक्त भी बे-तौर था
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'
आशुफ्तगी - उथल पुथल, परेशानी, अस्त व्यस्त (tumultous, troubled)
आगही - चेतना, जागरूक (aware, conscious)
शय - चीज़ (thing)
निगाह ए गौर - ध्यान से देखना (to observe with care)
सलीके - तमीज़, अदब (ettiquettes)
अर्ज़ किया है.....
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