...

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थक जाता हूँ..
अश्क आँखों में छुपाते हुए, थक जाता हूँ
बोझ पानी का उठाते हुए, थक जाता हूँ

पाँओं रखते हैं जो मुझ पर, उन्हें एहसास नहीं
मैं निशानात मिटाते हुए, थक जाता हूँ

बर्फ़ ऐसी के पिघलती नहीं, पानी बन कर
प्यास ऐसी के बुझाते हुए, थक जाता हूँ

अच्छी लगती नहीं इस दर्जा शनासाई भी
हाथ हाथों से मिलाते हुए, थक जाता हूँ

ग़म-गुसारी भी अजब कार-ए-मुहब्बत है कि मैं
रोने वालों को हँसाते हुए, थक जाता हूँ

इतनी क़ब्रें न बनाओ मेरे अंदर "मोहसिन"
मैं चराग़ों को जलाते हुए, थक जाता हूँ..