...

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धुआँ
उठा होगा वो देवयज्ञ से,
या कि मसान महायज्ञ से,
तमाम भीड़ करती होगी,
अश्रुपूरित प्रदक्षिणा।
किंतु विकराल चीख बन,
कहीं उठे न ये धुआँ कभी,
बसी रहें सब बस्तियाँ,
ज़िंदा न कोई जले कभी।
धुआँ उठे विवाह से,
ठंढ के ठहाकों भरे अलाव से,
या जंगलों में झूमते,
जवाँ दिलों के जमाव से।
© drajaysharma_yayaver