...

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मेरी अभिलाषा✍️
तुम जैसी हो वैसी ही रहना

न कम न ज्यादा रहना
वस जैसी हो सदा वैसी ही रहना..

ओढकर जिम्मेदारियो का गहना
अपने कर्तव्य निभाती रहना !

प्रगति के नित नये
सोपान गढते रहना !

अपनो को अपनत्व देना
और गैरो को भी अपना बनाकर रखना !

तुम जैसी हो
बस बैसी ही रहना
न कम न ज्यादा रहना ....


परिवार का साथ लेकर
जीवन के हर पड़ाव को
पार करती रहना ...

वस यूँ ही परिवार के हर दायित्व को
बखूबी निभाते रहना..


रिश्तो में प्यार
और प्यार में मिठास घोलती रहना

वस तुम यूँ ही मुस्कराती रहना!


तुम जैसी हो वैसी ही रहना
न कम न ज्यादा रहना ......


समाज और परिवार में
वस यूँ ही दमकते रहना

लोगों की आंखो का तारा बन
आकाश गंगा सी रहना ..

सुख और दुख में
जीवन की धूप मे
तुम छाँव बनकर रहना..


भाई की बहना
और पिता की लाडली
बनकर रहना


जीवन चक्र के इस खेल में

अपने और गैरो के मेल में
इन्द्रधनुष सी रहना ...

थोडा प्यार पाकर भी ..
ज्यादा की बरसात करते रहना...

वारिश की बूंदो की तरह
मेरे अंतरमन को भिगातो रहना..

न कम न ज्यादा रहना
तुम जैसी हो
वस वैसी ही रहना...


© ✍️ रविन्द्र "समय"