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गर्दन वही ऊँची हैं जो गुरु से शिक्षित है!
गुरु पहले अपने शिष्य की गर्दन को नीचे करवाता है, फिर ऊँची करवाता है, गुरु अपने शिष्यों की गर्दन को नीचे इसलिए करवाता है क्योंकि जिस गर्दन को तुम पहले ऊँची करके चल रहे थे वह सही अर्थों में ऊँची गर्दन नहीं थी, अगर मूढ़ता और भ्रम से भरी गर्दन को जीवन भर ऊपर भी रखोगे तो जीवन की बलि तो स्वयं के हाथों ही दे दोगे, कुछ हाथ नहीं लगना, हँसी के पात्र और बनोगे, और जो आएगा वही गर्दन को ठिकाने लगा कर चला जायेगा ,इसलिए गुरु शिष्य को तैयार करता है, उसे गुर देता है, उसे अंतर्दृष्टि देता है ताकि वह वो देख ले जो ओर कोई न देख पा रहा हो, गुरु से शिक्षित गर्दन ही सही अर्थों में ऊँची गर्दन हैं, मूढ़ता से भरी ऊँची गर्दनों का संसार में कोई औचित्य नहीं!
© ◆Mr Strength

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