मुस्कुराना पड़ता है
भीतर समुद्र सा उथल-पुथल है
लेकिन चेहरे पर रौनक दिखाना पड़ता है
बंधु गम हो लेकिन गम को छुपा कर
सबके सामने मुस्कुराना पड़ता है
दुःख दर्द होने पर भी
सब ठीक है कहना पड़ता है
अथाह भीड़ के इस प्रांगण में
मजबूरी हंस कर चलना पड़ता है
गम, कसक, उदासी में भी
कसक जहर का पीना पड़ता है
कितने लोगों के सवाल के जवाब दोगें
उससे अच्छा हंस कर जीना लगता है
खाली पेट होने पर भी
फुला कर भरा दिखाना पड़ता है
क्या कहूं आंख में पट्टी बांधकर
गम को पीना और चेहरे को हंसाना पड़ता है
मजबूरी में अब हर दिन
दिवाली सा घर को चमकाना पड़ता है
दिखावटी दुनिया की रंगों में
अब खुद को भी लाना पड़ता है
सच्चाई से रूबरू ना हो कोई
झूठ का सेहरा सजाना पड़ता है
काल्पनिक दुनिया को सजा कर वास्तविक दुनिया से खुद को बचाना पड़ता है
चेहरे पर हंसी
और अंदर से दिल जलाना पड़ता है
क्या कहूं दुनिया के रंगत के अनुसार
खुद को खुशहाल बताना पड़ता है
मुझे नहीं सबको
बादलों की तरफ आसमां ढककर रोना पड़ता है
इतनी महंगाई बढ़ गई है कि जीना मुश्किल है
फिर भी व्यक्ति न देखकर जाति पाति पर वोट गिरना पड़ता है
भाग नहीं सकते हैं ना
जिम्मेदारियों का बोझ तले चलना पड़ता है
कब तक उदासी चेहरे पर लेकर बैठेंगे
उससे अच्छा मुस्कुराना लगता है
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
लेकिन चेहरे पर रौनक दिखाना पड़ता है
बंधु गम हो लेकिन गम को छुपा कर
सबके सामने मुस्कुराना पड़ता है
दुःख दर्द होने पर भी
सब ठीक है कहना पड़ता है
अथाह भीड़ के इस प्रांगण में
मजबूरी हंस कर चलना पड़ता है
गम, कसक, उदासी में भी
कसक जहर का पीना पड़ता है
कितने लोगों के सवाल के जवाब दोगें
उससे अच्छा हंस कर जीना लगता है
खाली पेट होने पर भी
फुला कर भरा दिखाना पड़ता है
क्या कहूं आंख में पट्टी बांधकर
गम को पीना और चेहरे को हंसाना पड़ता है
मजबूरी में अब हर दिन
दिवाली सा घर को चमकाना पड़ता है
दिखावटी दुनिया की रंगों में
अब खुद को भी लाना पड़ता है
सच्चाई से रूबरू ना हो कोई
झूठ का सेहरा सजाना पड़ता है
काल्पनिक दुनिया को सजा कर वास्तविक दुनिया से खुद को बचाना पड़ता है
चेहरे पर हंसी
और अंदर से दिल जलाना पड़ता है
क्या कहूं दुनिया के रंगत के अनुसार
खुद को खुशहाल बताना पड़ता है
मुझे नहीं सबको
बादलों की तरफ आसमां ढककर रोना पड़ता है
इतनी महंगाई बढ़ गई है कि जीना मुश्किल है
फिर भी व्यक्ति न देखकर जाति पाति पर वोट गिरना पड़ता है
भाग नहीं सकते हैं ना
जिम्मेदारियों का बोझ तले चलना पड़ता है
कब तक उदासी चेहरे पर लेकर बैठेंगे
उससे अच्छा मुस्कुराना लगता है
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
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