...

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रूठा बचपन
अब बचपन भी रूठ सा गया मुझे
जो कभी खिलौने से खेलती आज वो परेशानियो से खेलती नजर आती है ...
जो कभी बिन बात पर हंसती वो आज हर बात पर रोती नजर आती है ...
कभी मासूम सी शक्ल थी आज वो भयानक रूप सी दिखती है ...
जो कभी परिवार के संग रहती ...
वो आज यारो के संग बहती है ...
कभी ख्वाबों में सुलझी हुई थी ...
आज परेशानियों के धागों सी उलझी हुई है ...
जो गुड़िया से खेलती थी ..
आज वो परेशानियों को झेलती है ...
उस वक्त बस अपनी मनमानी थी ...
आज बस लोगो की बातो पर हां कहती है ...
खुशियों के संग बहती थी जो कभी ...
आज बस आंसूओं के संग धारा बहती है
उस वक्त न कभी किसी को मनाने की फिक्र थी ...
आज बस किसी को खो ना देने की फ़िक्र है ...
किलकारियां टूटी , बचपन भी रूठा
आस भी टूटी , जिंदगी भी रूठी ...

-sanju mei