" गर्दिश "
छोटे छोटे गांवोे से
धूल भरे पावों से
मन में अनगिनत अरमान लिए
कंधों पर कुछ सामान लिए
आ जाते हैं बड़े शहरों में
किराए के छोटे कमरों में
दुनियां इक नई बसाने को
सपने कई सजाने को
फिर होती है इक शुरुआत नई
कालेज का वो पहला दिन
लगता हैं जैसे हो कोई बात नई
नया प्रांगण नए face
कुछ दिन तो घबराते हैं
पर पढ़ते पढ़ते चेहरों को
कई मीत बन जाते हैं
फिर कभी पार्क की सैर
तो कभी सिनेमा को जाते हैं
बैठ चाय की टपरी पे
गर्म समोसे खाते हैं
यूं ही कट जाते हैं
कई महीने मौज और मस्ती में
पढ़ाई भी ...