...

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गुज़रा हुआ साल आ जाए..
फिर मैं गुज़रता वक़्त भी रोक‌ लूँगी
अगर वो सामने बस इक बार‌ आ जाए

इस बार भी नज़रें झुका कर मिलना उससे
प्रति.! उसके सामने न दिल का हाल आ जाए

और मंज़िलों की यार फिर फिक़्र‌ किसे है
जो रास्ते भर मेरे हाथों में तिरा हाथ आ जाए

कि रात भी मीरा-सी जोगन बन नाचेगी
जो दबे पाँव किसी रोज़ तिरा ख़्वाब आ जाए

हाँ.! इन्हीं दिनों वो मेरे हाथों की चाय पिया करता था
काश कि इक दफ़ा फिर वो मिऐरा गुज़रा हुआ साल आ जाए