गज़ल - चाहत
तेरी चाहत में जब से डूबा हूं,
ये जहां और खुद को भूला हूं।
है जो तेरी अदा मनाने की,
बस वही सोच कर के रूठा हूं।
रात तन्हाई में लगे लम्बी,
चांद...
ये जहां और खुद को भूला हूं।
है जो तेरी अदा मनाने की,
बस वही सोच कर के रूठा हूं।
रात तन्हाई में लगे लम्बी,
चांद...