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गज़ल - चाहत
तेरी चाहत में जब से डूबा हूं,
ये जहां और खुद को भूला हूं।
है जो तेरी अदा मनाने की,
बस वही सोच कर के रूठा हूं।
रात तन्हाई में लगे लम्बी,
चांद की आस में मैं बैठा हूं।
खुद से ही है खफा खफा सा दिल,
यार जब से मैं तुझसे बिछड़ा हूं।
मेरी नस नस में तू है सांसों में,
तेरे होने से ही मैं जिंदा हूं।
दूर मुझसे है तू कहीं लेकिन,
तुझको महसूस पास करता हूं।
© शैलशायरी
ये जहां और खुद को भूला हूं।
है जो तेरी अदा मनाने की,
बस वही सोच कर के रूठा हूं।
रात तन्हाई में लगे लम्बी,
चांद की आस में मैं बैठा हूं।
खुद से ही है खफा खफा सा दिल,
यार जब से मैं तुझसे बिछड़ा हूं।
मेरी नस नस में तू है सांसों में,
तेरे होने से ही मैं जिंदा हूं।
दूर मुझसे है तू कहीं लेकिन,
तुझको महसूस पास करता हूं।
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