...

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काम क्रोध मद मोह लोभ
"काम क्रोध मद मोह लोभ को चित से बहाए दीजे"
" मीरा के प्रभु गिरधर नागर ता के संग में भीजे "

मीराबाई द्वारा रचित ये पंक्तियाँ कितना सार्थक व स्पष्ट
अर्थ बता रही हैं....

'काम' (कामवासना) जब उठती हैं तो उसके पीछे-पीछे 'क्रोध' भी यात्रा शुरू कर देता हैं फिर उस क्रोध में इंसान
'मद' (मादक पदार्थ) का उपयोग शुरू कर देता हैं, फिर
'मोह' में फंसकर ,मोह के ही खातिर उसका मन फिर 'लोभ' (लालच) में पड़ जाता है और उसका जीवन व्यर्थ हो जाता हैं...

जब काम क्रोध मद मोह लोभ चित से बहा दोगे तब मीराबाई ने अपनी आखिरी पंक्ति में कहा है कि उनके गिरधर नागर 'कृष्ण' के संग में भीग जाओगे अर्थात जीवन सार्थक हो जाएगा।