...

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रुसवाईयाँ .....
क्यों दोस्ती मेरी बदनाम हुई
क्यों रुसवा मैं सरेआम हुई
क्यों इल्जाम मेरे सिर लगा
क्यों तन्हा मैं आज शाम हुई !

खुशियों से तेरा दामन भर दूँ
बस इतना ही तो चाहा था मैंने
दोस्त बनकर आई थी मैं तो
दोस्ती को रब माना था मैनें !

कब तुझको परेशान किया
कब तुझे चैन से रहने ना दिया
कैसे कह दिया किसी ने मुझसे
तुझको अब मैं चैन से रहने दूँ !

दूरियां तुम खुद ही बढ़ाते गये
ये इल्जाम मैंने अपने सिर लिया
अपनी चाहत का गला घोंटकर
तेरी खुशियों में हरदम साथ दिया !

तुम जो कह दो तो हम चले जाते हैं
तेरी दुनियां में फिर लौटकर ना आएंगे
रख सको तो रखना दोस्ती संभालकर
अपनी चाहत हम अपने साथ ले जाएंगे !!